Sandeep Kumar

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लेखनी कहानी -01-Apr-2024

घर उजड़ा और महल बन रहा है

गांव भी अब शहर बन रहा है
हाल क्या बताऊं हालात का
जुआ केसरी सा ज्वान बदल रहा है
घर उजड़ा और,,,,,,

अभी कुछ बोला तभी कुछ बोला
इंसान का नियत बदल रहा है
हमें आपको लगता है केवल घर बदला
नहीं नहीं इंसान अपना मुखौटा बदल रहा है 
घर उजड़ा और,,,,,,

चलने का तर्ज, व अपना अपना फर्ज
लोग यु चुटकीयों में भूल रहा है
इतना खुद में मगरूर हो गया है 
कि बीबी बच्चों और देश दुनिया भूल रहा है
घर उजड़ा और,,,,,,

कल तक पापा मम्मी दादी-दादी कहते थे
आज संबोधन का लफ्ज़ बदल रहा है
नापने लगे हैं इंसान, इंसान को दौलत से
सम्मान अब जूतियों के ठोकरो में चल रहा है
घर उजड़ा और,,,,,,

बड़ा छोटा उम्र नहीं देखता कद देखता है 
घर पर बना सुशोभित घर देख रहा है
बदहाल हो रहा है यह नए जेनरेशन
हे भगवान किधर लेकर आपका ड्राइवर चल रहा है
घर उजड़ा और,,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार

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